उपरा
9789380092058
Aatmakathan
Atmakathan
Bhatkya Vimukt Jati
Fiction
Granthali
Kadambari
Lakshman Mane
Laxman Mane
Marathi Fiction
Novel
Samajik
Upara
Upra
आत्मकथन
उपरा
कथा
कादंबरी
ग्रंथाली
भटक्या विमुक्त जाती
लक्ष्मण माने
सामाजिक
Pages: 156
Weight: 152 Gm
Binding:
Paperback
ISBN13: 9789380092058
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Summary of the Book
जे जगलो, जे भोगलं, अनुभवलं, पाहिलं, ते-ते तसंच लिहित गेलो. पुन्हा एकदा तेच जगणं जगत गेलो. कुणावर दोषारोप ठेवावा हा हेतू कधीच नव्हता. अनेकदा मोह होऊनही स्वत:ला सावरत गेलो. काही ठिकाणी काही व्यक्तींची नावे बदलली ती नाइलाज म्हणूनच. या पलीकडे माझ्या पदरचं काही नाही.
या पुस्तकानं भटक्या विमुक्त जाती-जमातींच्या प्रश्नावर सामाजिक मंथन सुरू झालं, भटक्यांचे प्रश्न सामाजिक चर्चेचा विषय झाला आणि त्यांच्यासाठी काम करणार्या मंडळींच्या कामाला चालना मिळाली तर पुस्तक लिहिण्याचे श्रम सार्थकी लागले असे मी समजीन. पिढ्यान्पिढ्या बिर्हाड पाठीवर घेऊन गाढवाचं जिणं जगणार्या मंडळींच्या वेदना समाज समजावून घेऊ शकला तरी खुप झालं.
श्रीकांत यशवंत कुंभार
18/04/2023
मुझे उपरा यह किताब अच्छी लगी ।लेखक लक्ष्मण माने जी ने वही लिखा जो उन्होने जीया, जो अनुभव किया, जो देखा। उन्होने फिर से वही जीवन जीया। किसी को दोष देने का इरादा कभी नहीं था। कई बार ललचाने के बावजूद लेखक खुद को संभलने में कामयाब रहे है । यह पुस्तक घुमंतू जातियों और जनजातियों के मुद्दे पर सामाजिक मंथन शुरू करती है, खानाबदोशों का मुद्दा सामाजिक चर्चा का विषय बनता है और उनके लिए काम करने वाले चर्चों के काम को बढ़ावा मिलता है। पीढि़यों से बिरहद को पीठ पर लादकर गधे की तरह जीवन व्यतीत करने वाली मण्डली का दर्द लेखक लक्ष्मण माने जी ने खुद जिया है और अपने शब्दों में ,किताब के माध्यम से हमारे सामने प्रस्तुत किया है ।यह किताब कभी खत्म नहीं होनी चाहिए ऐसा लगा ।आप सभी यह किताब पढे ।
Rahul Lumbinikar
24/07/2017
Great. Man made kayam rahnari katha
jitendra niranjane
26/10/2012
khupach chhhhhhhhhhhan!!