Summary of the Book
वस्तुत: हमारा आज का जीवन कई खंडो में बिखरा हुआसा नजर आता है| सामाजिक ढाँचे में असंगतियाँ और विषमताएँ है, जिनकी काली छाया समाज के प्रत्येक सदस्य के व्यक्तिगत जीवन पर पड़े बिना नहीं रहती| इसीलिए एक बेपनाह उद्देश्यहीनता और निराशा आज हरेक पर छायी हुई है| स्वस्थ, स्वाभाविक और सच्चे जीवन की कल्पना भी मनो आज दुरूह हो उठी है|
इस कथानक के सभी पात्र ऐसे ही अभिशापों से ग्रस्त है| मूल नायक तो बचपन से ही अपने सही रास्ते से भटककर गलत रास्तों पर चला जाता है| उसके माता-पिता और परिजन भी तो भटके हुए थे| लेकिन वह अपने भटकाव में ही अपनी मंजिल को पा लेता है| क्या इस तरह इस कथानक का सुखद अंत होता है?..नहीं| आँसू का अंतिम कतरा तो सूखता ही नहीं| संयोग और दुर्घटना का सुखांत कैसा? मानव-जीवन कोई दुर्घटनाओं और संयोगों की समष्टि मात्र नहीं है! जब तक सारी सामाजिक व्यवस्था बदल नहीं जाती, जब तक हमारा जीवन-दर्शन आमूल बदल नही जाता, तब तक ऐसी दुर्घटनाएँ होती रहेंगी चाहे उनका परिणाम दु:खद हो या सुखद|
आज की समाज-व्यवस्था के परिवर्तन के साथ नारी की स्वतंत्रता का प्रश्न भी जुडा हुआ है| क्रांति का त्यागमय जीवन उसके जीवन-काल में क्या मर्यादा पा सका? उसके आदर्श को क्या उचित मूल्य मिला? रजनी का त्याग भी क्या सम्मान पा सका? उसकी सहानुभूति, ममता और प्रेम-भावना क्या आँसू से भीगी नहीं है? क्या उसके जीवन का सुख और के दु:ख पर आश्रित नहीं है?
इन्हीं सब प्रश्नों की गुत्थियाँ अमरकांत का यह उपन्यास खोलता है|