Summary of the Book
|| पसायदान ||
आतां विश्वात्मकें देवें | येणें वाग्यज्ञे तोषावें |
तोषोनि मजद्यावे | पसायदान हें ||१||
जे खळांची व्यंकटी सांडो | तया सत्कर्मी रती वाढो |
भूतां परस्परें पडो | मैत्र जीवांचें ||२||
दुरितांचे तिमिर जावो | विश्व स्वधर्मसूर्ये पाहो |
जो जें वांछील तो तें लाहो | प्राणिजात ||३||
वर्षत सकळमंगळी | ईश्वरनिष्ठांची मांदियाळी |
अनवस्त भूमंडळी | भेटतु भूतां ||४||
चलां कल्पतरूंचे अरव | चेतना चिंतामणीचे गांव ||
बोलते जे अर्णव | पीयूषांचे ||५||
चंद्रमे जे अलंछन | मार्तंड जे तापहीन |
ते सर्वाही सदा सुखी | पूर्ण होऊनी तिहीं लोकीं |
भजिजो आदीपुरुषीं | अखंडित ||७||
आणि ग्रंथोपजीविये | विशेषीं लोकीं इयें |
दृष्टादृष्टविजयें | हो आवें जी ||८||
तेथे म्हणे श्रीविश्वेश्वरावो | हा होईल दानपसावो |
येणें वरें ज्ञानदेवो | सुखिया जाला ||९||